aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "dhar"
मीराजी
1912 - 1949
शायर
मुर्ली धर शाद
रतन नाथ सरशार
1846 - 1903
ज़ाहिद डार
1936 - 2021
उमर आलम
born.2001
सीमाब सुल्तानपुरी
born.1939
बाल गंगा धर तिलक जी महाराज
लेखक
सिपाह दार ख़ान बेगुन
दारुल इशाअत ख़ानक़ाह मुजीबिया, पटना
पर्काशक
आसिफ़ डार
मकतबा-ए-दारुल उलूम नदवतुल उलमा, लखनऊ
जग बहादुर धर
योगदानकर्ता
दारुल इशअत ख़ानक़ाह-ए-अमजदिया, सीवान
शोबा-ए-तंज़ीम अबना-ए-दारुल उलूम देवबंद, सहारनपूर
लीला धर गुप्ता
सुना है उस के लबों से गुलाब जलते हैंसो हम बहार पे इल्ज़ाम धर के देखते हैं
इतना मानूस न हो ख़ल्वत-ए-ग़म से अपनीतू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जाएगा
शो'ला-ए-आह को बिजली की तरह चमकाऊँपर मुझे डर है कि वो देख के डर जाएँगे
हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगेतुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना
वो हमारी तरफ़ न देख के भीकोई एहसान धर गया होगा
इश्क़ बहुत सारी ख़्वाहिशों का ख़ूबसूरत गुलदस्ता है। दीदार, तमन्ना का ऐसा ही एक हसीन फूल है जिसकी ख़ुश्बू आशिक़ को बेचैन किए रखती है। महबूब को देख लेने भर का असर आशिक़ के दिल पर क्या होता है यह शायर से बेहतर भला कौन जान सकता है। आँखें खिड़की, दरवाज़े और रास्ते से हटने का नाम न लें ऐसी शदीद ख़्वाहिश होती है दीदार की। तो आइये इसी दीदार शायरी से कुछ चुनिंदा अशआर की झलक देखते हैः
ख़फ़ा होना और एक दूसरे से नाराज़ होना ज़िंदगी में एक आम सा अमल है लेकिन शायरी में ख़फ़्गी की जितनी सूरतें हैं वह आशिक़ और माशूक़ के दर्मियान की हैं। शायरी में ख़फ़ा होने, नाराज़ होने और फिर राज़ी हो जाने का जो एक दिल-चस्प खेल है उस की चंद तस्वीरें हम इस इन्तिख़ाब में आप के सामने पेश कर रहे हैं।
शायरों पर कभी-कभी आत्ममुग्घता का ऐसा सुरूर छाता है कि वो शायरी में भी ख़ुद को ही आइडियल शक्ल में पेश करने लगता है। ऐसे अशआर तअल्ली के अशआर कहलाते हैं। तअल्ली शायरी का यह छोटा सा इन्तिख़ाब शायद आप के कुछ काम आ सके।
धरدھر
put, keep
धीरدھیر
patience
ढोरڈھور
cattle
धारدھار
Knife-Edge
Shirimad Bhagwat Gita Rahassia
अनुवाद
Dar-ut-Tarjuma Usmania Ki Ilmi Aur Adabi Khidmaat
मुजीबुल इसलाम
साहित्यिक आंदोलन
Sans Ki Dhar
क़ैसर शमीम
ग़ज़ल
Taraqqi Pasand Tahreek
अली अहमद फ़ातमी
Fauz-e-Mubeen Dar-Radd-e-Harkat-e-Zameen
अहमद रज़ा खां रज़ा
Daar Se Bichhde
सय्यद मोहम्मद अशरफ़
अफ़साना
Gul-o-Anjum
काव्य संग्रह
Guldasta-e-Sukhan
Islam Aur Hindu Dharm Ka Taqabuli Mutala
मोहम्मद अहमद नईमी
तुलनात्मक अध्ययन
ये हिंदुस्तान
शीला धर
बाल-साहित्य
आईना दर आईना
हिमायत अली शाएर
मसनवी
हिन्दू धर्म हज़ार बरस पहले
अबू रेहान अल-बैरूनी
दर्शन / फ़िलॉसफ़ी
शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी और उन की इल्मी ख़िदमात
डॉ. सुरैया डार
आलोचना
Tarah Daar Laundi
मुंशी सज्जाद हुसैन
फ़िक्शन
Tareekh-e-Adbiyat-e-Iran
एडवर्ड जी ब्राउन
इतिहास
आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों परक्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
ऐसा हो कोई नामा-बर बात पे कान धर सकेसुन के यक़ीन कर सके जा के उन्हें सुना सके
लहजे की तेज़ धार से ज़ख़्मी किया उसेपैवस्त दिल में लफ़्ज़ की संगीन हम ने की
बुझी इश्क़ की आग अंधेर हैमुसलमाँ नहीं राख का ढेर है
चूसी जिन्हों ने अहमद मुख़्तार की ज़बाँक्या दुर्र-ए-आब-दार हैं इस दुर्ज में निहाँ
क्या हवा हाथ में तलवार लिए फिरती थीक्यूँ मुझे ढाल बनाने को ये छितनार गिरे
ओस से प्यास कहाँ बुझती हैमूसला-धार बरस मेरी जान
आती है धार उन के करम से शुऊर मेंदुश्मन मिले हैं दोस्त से बेहतर कभी कभी
तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चलेजिस लिए आए थे सो हम कर चले
हम फ़क़ीरों की सूरतों पे न जाहम कई रूप धार लेते हैं
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