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ग़ज़ल
आँखों को नक़्श-ए-पा तिरा दिल को ग़ुबार कर दिया
हम ने विदा-ए-यार को अपना हिसार कर दिया
आतिफ़ वहीद यासिर
शेर
या दिल है मिरा या तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है
गुल है कि इक आईना सर-ए-राह पड़ा है
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
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नज़्म
तस्वीर-ए-दर्द
किया रिफ़अत की लज़्ज़त से न दिल को आश्ना तू ने
गुज़ारी उम्र पस्ती में मिसाल-ए-नक़्श-ए-पा तू ने
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शुरूअ' कब हो न जाने नज़ाकतों का सफ़र
मैं दिल को बैठा हूँ शायान-ए-नक़्श-ए-पा कर के
जोहर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
सदियों से धड़कती हुई इक चाप थी दिल में
एक एक घड़ी सूरत-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा थी
ख़ुर्शीद रिज़वी
ग़ज़ल
लिया है गाहे-गाहे नक़्श-ए-पा-ए-यार का बोसा
न वो बाहर निकलता ये भी अरमाँ दिल में रह जाता
सय्यद अहमद हुसैन शफ़ीक़ लखनवी
ग़ज़ल
ये नक़्श-ए-पा-ए-नाज़ है इक शम-ए-हुस्न का
दिल से लगाए बैठे हैं दाग़-ए-जिगर को हम
नज़ीर हुसैन सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ये नक़्श-ए-पा-ए-नाज़ है इक शम’-ए-हुस्न का
दिल से लगाए बैठे हैं दाग़-ए-जिगर को हम