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किसी की आँख में रहता किसी के दिल में रह जाता

सय्यद अहमद हुसैन शफ़ीक़ लखनवी

किसी की आँख में रहता किसी के दिल में रह जाता

सय्यद अहमद हुसैन शफ़ीक़ लखनवी

MORE BYसय्यद अहमद हुसैन शफ़ीक़ लखनवी

    किसी की आँख में रहता किसी के दिल में रह जाता

    ग़ुबार-ए-ग़म-ज़दा उठता तो इस मुश्किल में रह जाता

    लिया है गाहे-गाहे नक़्श-ए-पा-ए-यार का बोसा

    वो बाहर निकलता ये भी अरमाँ दिल में रह जाता

    सबब से ना-तवानी के पहुँचा कू-ए-जानाँ तक

    जो मैं घर से निकलता पहली ही मंज़िल में रह जाता

    ज़माना हाथ फैलाता हमिय्यत तर्क कर देता

    'अदम की राह में गर कुछ कफ़-ए-साइल में रह जाता

    हमेशा मैं ख़दंग-ए-नाज़ को रखता हूँ सीने में

    मिरे दिल से निकलता दूसरे के दिल में रह जाता

    हमारे ख़ून-ए-नाहक़ की शहादत हश्र में देता

    अगर धब्बा लहू का ख़ंजर-ए-क़ातिल में रह जाता

    सुना है बा'द मेरे अक़रबा की ग़ैर हालत थी

    मेरी मौत आती मैं भी इस मुश्किल में रह जाता

    मिरी दरिया-ए-ग़म में मौत जाती तो ये होता

    बस इक तूफ़ान उठ कर दामन-ए-साहिल में रह जाता

    यक़ीं है यूँ तड़पता सारे 'आलम को ख़बर होती

    अगर दम नाम को बाक़ी तिरे घायल में रह जाता

    मिला है ख़ाक में मजनूँ सुवारत सारी मेहनत थी

    कोई ज़र्रा जो उड़ कर गोशा-ए-महमिल में रह जाता

    लगाया हाथ पूरा और कहा जल्लाद ने हँस कर

    ये क्यों अरमान इक बाक़ी दिल-ए-बिस्मिल में रह जाता

    गया मैं उस की सोहबत में ख़ुशी से मौत जाती

    बहुत अच्छा था मेरा ज़िक्र उस महफ़िल में रह जाता

    यक़ीं है बा'द मेरे फिर किसी का इम्तिहाँ होता

    जो कोई ज़ुल्म बाक़ी आसमाँ के दिल में रह जाता

    ग़श आया उस को ऐसा हश्र करता सारे 'आलम में

    जो कुछ भी होश बाक़ी आप के ग़ाफ़िल में रह जाता

    'अयादत को तिरे अहबाब गर कुछ भी पाए

    'शफ़ीक़' इस बात का अरमान तेरे दिल में रह जाता

    स्रोत:

    Atiyya-e-Ilahi (Pg. 49)

    • लेखक: सय्यद अहमद हुसैन शफ़ीक़ लखनवी
      • प्रकाशक: मेयार प्रेस, लखनऊ

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