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नज़्म
उमीद
सीने के दहकते दोज़ख़ में अरमाँ न जलाए जाएँगे
ये नरक से भी गंदी दुनिया जब स्वर्ग बताई जाएगी
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
जल्वा ज़ार-ए-आतिश-ए-दोज़ख़ हमारा दिल सही
फ़ित्ना-ए-शोर-ए-क़यामत किस के आब-ओ-गिल में है
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
दोज़ख़ ओ जन्नत हैं अब मेरी नज़र के सामने
घर रक़ीबों ने बनाया उस के घर के सामने
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
ग़ज़ल
मिलेगी शैख़ को जन्नत, हमें दोज़ख़ अता होगा
बस इतनी बात है जिस के लिए महशर बपा होगा