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शेर
मुझे ख़ामोशियाँ पढ़ने का फ़न आता तो पढ़ लेता
तुम्हारी झील सी ख़ामोश आँखों की पशेमानी
लतीफ़ शाह शाहिद
ग़ज़ल
कुछ ऐसा पास-ए-ग़ैरत उठ गया इस अहद-ए-पुर-फ़न में
कि ज़ेवर हो गया तौक़-ए-ग़ुलामी अपनी गर्दन में
चकबस्त बृज नारायण
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नज़्म
एक रह-गुज़र पर
अदा-ए-लग़्ज़िश-ए-पा पर क़यामतें क़ुर्बां
बयाज़-रुख़ पे सहर की सबाहतें क़ुर्बां
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ज़माना हो गया शातिर 'इराक़ी' पास अपना रख
जिन्हें बचने का फ़न आता है वो हुश्यार बैठे हैं