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ग़ज़ल
फ़ख़्र क्या कम है कि नीलामी-ए-यूसुफ़ में 'नईम'
तही-दामाँ थे मगर थे तो ख़रीदारों में
नईम जर्रार अहमद
नज़्म
मैं ने ये कहा कब कि मनाने के लिए आ
मैं ने ये कहा कब कि मनाने के लिए आ
मुझ काठ के उल्लू को फँसाने के लिए आ
मोहम्मद यूसुफ़ पापा
ग़ज़ल
अब अपने दरमियाँ शीशे की इक दीवार बाक़ी है
मिरे दुख और तिरा ना-मो'तबर किरदार बाक़ी है
नसीम निकहत
नज़्म
बन-बास
मैं कि ख़ुद अपनी ही आवाज़ के शो'लों का असीर
मैं कि ख़ुद अपनी ही ज़ंजीर का ज़िंदानी हूँ
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
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नज़्म
दूसरा तजरबा
कल शब अजीब अदा से था इक हुस्न मेहरबाँ
वो शबनमी गुलाब सी रंगत धुली धुली
हिमायत अली शाएर
नज़्म
तलाश
मैं तुझे ढूँडने निकला हूँ मिरी जान-ए-नज़र
जानता हूँ कि तिरी राहगुज़र कौन सी है
यूसुफ़ कामरान
नज़्म
बुक़रात बहुत खाता था
हम ने महबूब के ऐवान में जा कर देखा
चीन में मिस्र में ईरान में जा कर देखा
मोहम्मद यूसुफ़ पापा
नज़्म
सानेहा
दर्द-ओ-ग़म-ए-हयात का दरमाँ चला गया
वो ख़िज़्र-ए-अस्र-ओ-ईसा-ए-दौराँ चला गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मोहिब्बान-ए-वतन का नारा
शहीद-ए-जौर-ए-गुलचीं हैं असीर-ए-ख़स्ता-तन हम हैं
हमारा जुर्म इतना है हवा-ख़्वाह-ए-चमन हम हैं
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
दर्द-ए-दिल
दर्द है दिल के लिए और दिल इंसाँ के लिए
ताज़गी बर्ग-ओ-समर की चमनिस्ताँ के लिए