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ग़ज़ल
है सौ अदाओं से उर्यां फ़रेब-ए-रंग-ए-अना
बरहना होती है लेकिन हिजाब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
ये वक़्त का है तक़ाज़ा कि है फ़रेब-ए-नज़र
कि बेटा बाप के क़द से बड़ा दिखाई दे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
कितने अज़ीज़ हैं ये मसीहा को क्या ख़बर
वो ज़ख़्म-ए-दिल जो लज़्ज़त-ए-आज़ार तक गए
सय्यदा शान-ए-मेराज
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ग़ज़ल
'अहद-ए-नौ में कुछ नहीं मिलता है क़ीमत के बग़ैर
अब मसीहा ने रविश अपनी पुरानी छोड़ दी
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
फ़रेब-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा बहुत ही 'आरज़ी शय है
रहेंगे 'उम्र भर इस दिल पे चोटों के निशाँ बाक़ी