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ग़ज़ल
दिल से मजबूर भी हम साहिब-ए-पिंदार भी हम
आस्ताँ से तिरे कतरा के गुज़र आते हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
पारसा हम-राह ले जाएँगे पिंदार-ए-अमल
हम तो अपने साथ उन की ख़ाक-ए-पा ले जाएँगे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
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कुल्लियात
हो तुम जो मेरे हैरती-ए-फ़र्त-ए-शौक़-ए-वस्ल
क्या जानो दिल किसू से तुम्हारा लगा नहीं
मीर तक़ी मीर
नज़्म
मिर्ज़ा-'ग़ालिब'
तिरे अशआ'र पढ़ता हूँ तिरे नग़्मात गाता हूँ
कमाल-ए-कैफ़-ओ-फ़र्त-ए-बे-खु़दी में झूम जाता हूँ
शातिर हकीमी
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-सोज़-ए-उल्फ़त में देख कर सकूँ दिल का
बिजलियाँ मचलती हैं बादलों के महशर में