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नज़्म
हिमाला
ऐ हिमाला ऐ फ़सील-ए-किश्वर-ए-हिन्दुस्तान
चूमता है तेरी पेशानी को झुक कर आसमाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तराना-ए-क़ौमी
मर्हबा ऐ ख़ाक-ए-पाक-ए-किश्वर-ए-हिन्दोस्ताँ
यादगार-ए-अहद-ए-माज़ी है तू ऐ जान-ए-जहाँ
सफ़ीर काकोरवी
शेर
कहिए क्यूँकर न उसे बादशह-ए-किश्वर-ए-हुस्न
कि जहाँ जा के वो बैठा वहीं दरबार लगा
जुरअत क़लंदर बख़्श
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ग़ज़ल
यही 'किशवर' है बस उम्र-ए-ख़िज़र का मुस्तहिक़ या-रब
तिरी दुनिया में इस ने आज तक देखा नहीं कुछ भी
किश्वर कोलारी
ग़ज़ल
फ़सील-ए-शहर-ए-अना में शिगाफ़ मैं ने किया
ये कार-नामा ख़ुद अपने ख़िलाफ़ मैं ने किया
शकील इबन-ए-शरफ़
नज़्म
नज़्र-ए-दिल
सर पे रख सकता हूँ ताज-ए-किश्वर-ए-नूरानियाँ
महफ़िल-ए-ख़ुर्शीद को नीचा दिखा सकता हूँ मैं