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ग़ज़ल
न कह मुतरिब मिरी चुप से तिरे गानों पे क्या गुज़री
ज़रा पूछ अपनी तानों से मिरे कानों पे क्या गुज़री
नवाब सय्यद हकीम अहमद नक़्बी बदायूनी
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नज़्म
सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)
चले जो यार तो दामन पे कितने हाथ पड़े
दयार-ए-हुस्न की बे-सब्र ख़्वाब-गाहों से
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो