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ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
रात और रेल
छेड़ती इक वज्द के आलम में साज़-ए-सरमदी
ग़ैज़ के आलम में मुँह से आग बरसाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सरमाया-दारी
बला-ए-बे-अमाँ है तौर ही इस के निराले हैं
कि इस ने ग़ैज़ में उजड़े हुए घर फूँक डाले हैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
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शेर
बे-वफ़ा तुम बा-वफ़ा मैं देखिए होता है क्या
ग़ैज़ में आने को तुम हो मुझ को प्यार आने को है
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
ग़ैज़ का सूरज था सर पर सच को सच कहता तो कौन
रास आता किस को महशर सच को सच कहता तो कौन
एहतराम इस्लाम
नज़्म
हज़र करो मिरे तन से
हर इक कशीद है सदियों के दर्द ओ हसरत की
हर इक में मोहर-ब-लब ग़ैज़ ओ ग़म की गर्मी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
नज़्म
मौज-ए-ख़ूँ जब तक रवाँ रहती है उस का सुर्ख़ रंग
जज़्बा-ए-शौक़-ए-शहादत दर्द, ग़ैज़ ओ ग़म का रंग
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
राम
बचपन से ना-पसंद थे ग़ैज़-ओ-ग़ज़ब उन्हें
लोगों का दिल दुखाना गवारा था कब उन्हें