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नज़्म
ईद की ख़रीदारी
बहम दस्त-ओ-गरेबाँ सेल्ज़-मैन और उन के गाहक हैं
वो ग़ुल बरपा है जैसे नग़्मा-ज़न जौहड़ में मेंडक हैं
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
ग़ज़ल
मिरी छाती पे रख कर दस्त की तश्ख़ीस हुकमा ने
ये सीना कान-ए-गंधक या कि आतिश-दान है क्या है
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
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ग़ज़ल
ये धुआँ है बारूदी ये महक है गंधक की
शहर का निशाँ अब तो बे-अमाँ तअ'स्सुब है
सादिया रोशन सिद्दीक़ी
नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
वो हँसती हो तो शायद तुम न रह पाते हो हालों में
गढ़ा नन्हा सा पड़ जाता हो शायद उस के गालों में
जौन एलिया
नज़्म
तराना-ए-हिन्दी
ऐ आब-रूद-ए-गंगा वो दिन है याद तुझ को
उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
चाहत के बदले में हम तो बेच दें अपनी मर्ज़ी तक
कोई मिले तो दिल का गाहक कोई हमें अपनाए तो
अंदलीब शादानी
नज़्म
आदमी-नामा
देखा तो आदमी ही यहाँ मिस्ल-ए-रांग है
फ़ौलाद से गढ़ा है सो है वो भी आदमी