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कुल्लियात
बाग़ से ले दश्त तक रखते हैं इक शोर-ए-अजब
हम असीरान-ए-क़फ़स के नाला-हा-ए-ज़ार-ए-दिल
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
गुल हमा-तन-ज़ख़्म हैं फिर भी हमा-तन-गोश हैं
बे-असर कुछ नाला-हा-ए-बुलबुल-ए-शैदा हैं आप
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
वो जिन को सुन के इक मुद्दत से टस से मस नहीं होते
मुझे वो नाला-हा-ए-बेअसर अच्छे नहीं लगते
सुल्तान शाकिर हाश्मी
ग़ज़ल
गो तुम तक जा नहीं पाते तुम उन को सुन नहीं पातीं
वो लेकिन नाला-हा-ए-बेअसर सब ख़ैरियत से हैं
ऐन सीन
नज़्म
जमुना
महशरिस्तान-ए-अलम कम्बख़्त है कर दिल को चाक
चीर पहलू को कि निकलें नाला-हा-ए-दर्द-नाक