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ग़ज़ल
आँखों ने बे-क़रारी-ए-तिफ़्ल-ए-सरिश्क से
पैदा किया है मादन-ए-सीमाब का ख़वास
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
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ग़ज़ल
दिल है क्यों गिर्या-ए-बे-अश्क से पुर-नूर बहुत
तुम बहुत पास हो या ख़ुद से हैं हम दूर बहुत
ख़्वाजा शौक़
ग़ज़ल
तब से आशिक़ हैं हम ऐ तिफ़्ल-ए-परी-वश तेरे
जब से मकतब में तू कहता था अलिफ़ बे ते से
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
सदक़े उस पर्वरदिगार-ए-पाक के जिस ने किया
बहर-ए-तिफ़्ल-ए-ग़ुंचा पैदा शीर-ए-बे-पिस्तान-ए-सुब्ह
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
नज़्म
ईद
बे-तकल्लुफ़ तिफ़्ल-ए-शोख़-ओ-शैख़-ए-शैब-ओ-मर्द-ओ-ज़न
आज मशग़ूल-ए-तरब हैं लुत्फ़-ए-बाहम के लिए
नवाब सय्यद हकीम अहमद नक़्बी बदायूनी
ग़ज़ल
गिर्या-ए-बे-इख़्तियार-ए-गम भी था फ़ितरी इलाज
जिस ने थोड़े जोश को हर मर्तबा कम कर दिया
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
पर्दा-दार-ए-गिर्या-ए-बे-इख़्तियारी फ़क़्र है
बर्क़ है अब्र-ए-सियह में और मैं कम्मल में हूँ
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
मेरी आहें हैं दलील-ए-गिरिया-ए-बे-इंतिहा
जितनी आँधी आए बारिश हो सिवा बरसात में