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ग़ज़ल
गुल-ए-शाख़-ए-मोहब्बत पर लहू का रंग खिलता है
कि अब रंग-ए-हिना ज़िक्र-ए-लब-ओ-रुख़्सार आएगा
महताब हैदर नक़वी
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नज़्म
मशवरा
तुम सर-ए-शाख़-ए-समन बाग़ में आया न करो
बाग़ में मनचले भौंरे भी उड़ा करते हैं
सलाम मछली शहरी
नज़्म
कातिक का चाँद
चाँद कब से है सर-ए-शाख़-ए-सनोबर अटका
घास शबनम में शराबोर है शब है आधी
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
शाख़-ए-बुलंद-ए-बाम से इक दिन उतर के देख
अम्बार-ए-बर्ग-ओ-बार-ए-ख़िज़ाँ में बिखर के देख