aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
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परिणाम "gulistan e"
गुलिस्तान-ए-अदब, बरैली
पर्काशक
गुलिस्तान-ए-अदब, लाहौर
गुलिस्तान-ए-मोहम्मदी प्रेस, लखनऊ
मकतबा-ए-गुलिस्तान-ए-अदब, कोलकाता
गुलिस्तान-ए-अदब पब्लिकेशन्स, बिहार
इदार-ए-गुलिस्तान-ए-अनवर साबरी, दिल्ली
गुलिस्तान-ए-अदब इटवा, सिद्धारथ नगर, यू.पी۔
बज़्म-ए-गुलिस्तान-ए-उर्दू
गुलिसतान-ए-उर्दू, नई देहली
ऊर्दू बाग़ गुलिसतान-ए-जौहर, कराची
गुलिस्तान-ए-सुख़न साहब गंज, बिहार
मतबा गुलशन-ए-अवध
गुलशन-ए-इक़बाल, कराची
मतबा-ए-गुलशन-ए-मोहम्मदी
मतबा गुलशन-ए-फ़ैज़, लखनऊ
ख़्वाबों के गुलिस्ताँ की ख़ुश-बू-ए-दिल-आरा हैया सुब्ह-ए-तमन्ना के माथे का सितारा है
'असद' बहार-ए-तमाशा-ए-गुलिस्तान-ए-हयातविसाल-ए-लाला अज़रान-ए-सर्व-क़ामत है
बहार-ए-बाग़-ए-गुलिस्तान-ए-सरमदी हम हैंख़ुदा के साथ हैं दाइम वो आदमी हम हैं
बहुत ख़ुशनुमा है गुलिस्तान-ए-आलममगर सैर करने की फ़ुर्सत नहीं है
दिल की मेरे जो कोई शोमी-ए-क़िस्मत देखेबावर आ जाए गुलिस्ताँ का बयाबाँ होना
तख़्लीक़ी ज़बान तर्सील और बयान की सीधी मंतिक़ के बर-अक्स होती है। इस में कुछ अलामतें हैं कुछ इस्तिआरे हैं जिन के पीछे वाक़ियात, तसव्वुरात और मानी का पूरा एक सिलसिला होता है। चमन, सय्याद, गुलशन, नशेमन, क़फ़स जैसी लफ़्ज़ियात इसी क़बील की हैं। यहाँ जो शायरी हम-पेश कर रहे हैं वह चमन की उन जहतों को सामने लाती है जो आम तौर से हमारी निगाहों से ओझल होती है।
Gulistan-e-Saadi
शैख़ सादी शीराज़ी
शिक्षाप्रद
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Gulistan-e-Hamd-o-Naat-o-Manqabat
सय्यद मुज़फ़्फ़रूद्दीन
Gulistan-e-Sadi
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फ़ारूक़ अंसारी
Gulistan-e-Madar
सय्यद इरफ़ान अली
तज़किरा
Gulistan-e-Amjad
अमजद हैदराबादी
अनुवाद
Gulistan-e-Urdu
मौलवी फ़िरोज़ुद्दीन
Tazkira-e-Gulistan-e-Sukhan
मिर्ज़ा क़ादिर बख़्श साबिर देहलवी
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
Gulistan-e-Rahmat
अफ़ज़ल हुसैन
शाइरी
Gulistan-e-Khuldabad
मोहम्मद अब्दुल हई
महिलाओं की रचनाएँ
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क़मर मुरादाबादी
ग़ज़ल
और ही ढंग से तंज़ीम-ए-गुलिस्ताँ होतीदूर-अंदेश अगर अहल-ए-गुलिस्ताँ होते
देखिए रंग जमाती है बहार अब क्यों करलूट कर हुस्न-ए-गुलिस्ताँ को ख़िज़ाँ गुज़री है
इस तरह फूँक मेरा गुलिस्तान-ए-आरज़ूफिर कोई तेरे बाद इसे वीराँ न कर सके
नशेमन ग़रीबों के उजड़े पड़े हैंहवा-ए-गुलिस्ताँ को चलना न आया
अपने ही दिल में खिले फूल से कहता है 'रज़ा'तू जहाँ है उसे रास आए गुलिस्ताँ होना
ऐसी भी क्या निगाह-ए-मोहब्बत से दुश्मनीफूलों समेत रंग-ए-गुलिस्ताँ बदल गया
सरासर उन को गुलिस्तान-ए-आरज़ू कहिएरुकें तो रंग समझिए चलें तो बू कहिए
छूटेगा जी न जी न गुलिस्तान-ए-आरज़ूबुलबुल के चूतड़ों में है पैकान-ए-आरज़ू
ऐसी चली हवा-ए-गुलिस्ताँ मिरी तरफ़छू कर बू-ए-गुलाब ने संदल क्या मुझे
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