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ग़ज़ल
ग़ुरूर-ए-नाज़ दिखा तुझ में कितना जौहर है
मिरा ख़ुलूस भी दरिया नहीं समुंदर है
ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी
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शेर
न मिज़ाज-ए-नाज़-ए-जल्वा कभी पा सकीं निगाहें
कि उलझ के रह गई हैं तिरी ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म में
अख़्तर ओरेनवी
ग़ज़ल
पहेली कौन बूझेगा जवाब-ए-नाज़-ए-जानाँ की
हम उस हूँ को समझते हैं नहीं की उस ने या हाँ की
जुर्म मुहम्मदाबादी
नज़्म
लश्कर-ए-हिन्द
जाओ ऐ नाज़-ए-वतन धाक बिठा कर आना
'अज़्मत-ए-क़ौम पे ख़ून अपना बहा कर आना