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नज़्म
शिकवा
तू जो चाहे तो उठे सीना-ए-सहरा से हबाब
रह-रव-ए-दश्त हो सैली-ज़दा-ए-मौज-ए-सराब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक (हम देखेंगे)
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ाएब भी है हाज़िर भी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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शेर
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
रोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
किया ख़ाक आतिश-ए-इश्क़ ने दिल-ए-बे-नवा-ए-'सिराज' कूँ
न ख़तर रहा न हज़र रहा मगर एक बे-ख़तरी रही
सिराज औरंगाबादी
नज़्म
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
लिल्लाह हबाब-ए-आब-ए-रवाँ पर नक़्श-ए-बक़ा तहरीर न कर
मायूसी के रमते बादल पर उम्मीद के घर तामीर न कर