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ग़ज़ल
तअ'य्युन से बरी हो गर है ला-महदूद का तालिब
कि हद्द-ए-मुल्क-ओ-दुनिया तो वहीं तक है जहाँ तक है
दत्तात्रिया कैफ़ी
नज़्म
नई तहज़ीब
ये मौजूदा तरीक़े राही-ए-मुल्क-ए-अदम होंगे
नई तहज़ीब होगी और नए सामाँ बहम होंगे
अकबर इलाहाबादी
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ग़ज़ल
ऐ ज़ुल्फ़ फैल फैल के रुख़्सार को न ढाँक
कर नीम-रोज़ की न शह-ए-मुल्क-ए-शाम हिर्स
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
नज़्म
दिल-आशोब
ये शख़्स यहाँ पामाल रहा, पामाल गया
तिरी चाह में देखा हम ने ब-हाल-ए-ख़राब इसे
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
कातिक का चाँद
चाँद कब से है सर-ए-शाख़-ए-सनोबर अटका
घास शबनम में शराबोर है शब है आधी
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
उजाले की लकीर
रास्ते पर कई ख़ुर्शीद नए जल उट्ठे
रौशनी देखिए ता-हद्द-ए-नज़र फैल गई