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ग़ज़ल
तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने
जुस्तुजू में अहल-ए-दिल फिरते हैं दीवाने बने
फ़िगार उन्नावी
ग़ज़ल
अब क्यूँ हरीम-ए-नाज़ में सरमस्तियाँ नहीं
हम वो नहीं कि आप में वो शोख़ियाँ नहीं
सय्यद मज़हर गिलानी
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ग़ज़ल
हरीम-ए-नाज़ को हम ग़ैर की महफ़िल नहीं कहते
रक़ीबों पर मगर वो कौन था माइल नहीं कहते
वासिफ़ देहलवी
शेर
क़दम अपने हरीम-ए-नाज़ में इस शौक़ से रखना
कि जो देखे मिरे दिल को तुम्हारा आस्ताँ समझे
फ़िगार उन्नावी
ग़ज़ल
रह गई आबरू-ए-इश्क़ तेरे हरीम-ए-नाज़ में
ढल गया सोज़-ए-ज़िंदगी मेरे शिकस्ता-साज़ में
अरमान रामपुरी
ग़ज़ल
हरीम-ए-नाज़ कहाँ और सर-ए-नियाज़ कहाँ
कहाँ का सज्दा किसे होश है नमाज़ कहाँ