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शेर
'नाज़िम' ये इंतिज़ाम रिआ'यत है नाम की
मैं मुब्तला नहीं हवस-ए-मुल्क-ओ-माल का
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
नज़्म
नई तहज़ीब
ये मौजूदा तरीक़े राही-ए-मुल्क-ए-अदम होंगे
नई तहज़ीब होगी और नए सामाँ बहम होंगे
अकबर इलाहाबादी
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ग़ज़ल
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
ऐ ज़ुल्फ़ फैल फैल के रुख़्सार को न ढाँक
कर नीम-रोज़ की न शह-ए-मुल्क-ए-शाम हिर्स
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
नज़्म
दिल-आशोब
यूँ कहने को राहें मुल्क-ए-वफ़ा की उजाल गया
इक धुँद मिली जिस राह में पैक-ए-ख़याल गया