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ग़ज़ल
तामील-ए-हुक्म-ए-रब में हैं मसरूफ़ रात-दिन
इस वास्ते ये शम्स-ओ-क़मर बोलते नहीं
औलाद-ए-रसूल क़ुद्सी
ग़ज़ल
एक पत्ता भी नहीं हिलता ब-जुज़ हुक्म-ए-ख़ुदा
किस तरह आबाद कर लें अपने वीराने को हम
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मुद्दत से इश्तियाक़ है बोस-ओ-कनार का
गर हुक्म हो शुरूअ' करे अपना काम हिर्स
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
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ग़ज़ल
लिल्लाहिल-हम्द कि गुलज़ार में हंगाम-ए-सुबूह
हुक्म-ए-आज़ादी-ए-मुर्ग़ान-ए-गिरफ़्तार आया
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
किसी का हुक्म-ए-ज़बाँ-बंदी-ए-जुनूँ भी चला
किसी के क़िस्से सुख़न बन के ज़ेर-ए-लब भी चले
आरिफ़ अब्दुल मतीन
ग़ज़ल
तुम ने तो हुक्म-ए-तर्क-ए-तमन्ना सुना दिया
किस दिल से आह तर्क-ए-तमन्ना करे कोई