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ग़ज़ल
ख़मोश नज़रों से हुस्न-ए-बुताँ की बात करें
न लब पे आई जो उस दास्ताँ की बात करें
जयकृष्ण चौधरी हबीब
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ग़ज़ल
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगी
एहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
शोला-ए-हुस्न-ए-बुताँ फूँक न दे आलम को
सुर्ख़ हैं फूल से रुख़्सार बड़ी मुश्किल है
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
दाम-ए-ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-बुताँ से छुड़ा लिया
क्या बाल बाल मुझ को ख़ुदा ने बचा लिया
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
न वो सोचों से उतरेगा न आँखें चैन पाएँगी
ख़याल-ए-पैकर-ए-हुस्न-ए-बुताँ सोने नहीं देता