aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ik-do"
ए. डी. अज़हर
1900 - 1974
शायर
जमालुद्दीन अफ़गानी
1838 - 1897
लेखक
ए. डी. मुज़्तर
संपादक
यू. ए. बी. आई. डी. कलानूरी
Muhammad 'Aufī
डॉ. तंज़ीलुर्रहमान
डाॅ. कुर्रतुलऐन ताहिरा
डॉ, मुहम्मद शकील ओज
डॉ. ज़ैनुल आबिदीन
ज़ाहिदुल हक़
born.1977
डॉ. ए.बी. अशरफ
डॉ मोहम्मद रज़ी-उल-इस्लाम नदवी
born.1964
डॉ. ए. एच. इविंग
डॉ. सय्यद अहसन-उज़-ज़फ़र
डाॅ. शरफुन्नहार
इक दो अपने यार हुएबाक़ी सब अग़्यार हुए
سیٹھ لطیف کانجی کا نام اب بہت کم لوگ جانتے ہوں گے۔ کراچی کی پرانی تاریخ سے وابستہ کچھ لوگ شاید ذہن پر زور ڈالیں تو انہیں کچھ نہ کچھ یاد آ جائے۔ مگر ایسے لوگ بھی اب کتنے رہ گئے ہیں۔ خود کراچی بھی اب وہ کراچی کہاں رہا...
एक दो पल की आश्नाई बसऔर फिर 'उम्र भर दुहाई बस
एक दो तीन चार पाँच छे सातयूँही गिन लेंगे कम के क्या मअनी
किसी का मिलना, बिछड़ना और एक दो बातेंतमाम सिलसिला ज़ेब-ए-क़लम न कर पाया
दो इन्सानों का बे-ग़रज़ लगाव एक अज़ीम रिश्ते की बुनियाद होता है जिसे दोस्ती कहते हैं। दोस्त का वक़्त पर काम आना, उसे अपना राज़दार बनाना और उसकी अच्छाइयों में भरोसा रखना वह ख़ूबियाँ हैं जिन्हें शायरों ने खुले मन से सराहा और अपनी शायरी का मौज़ू बनाया है। लेकिन कभी-कभी उसकी दग़ाबाज़ियाँ और दिल तोड़ने वाली हरकतें भी शायरी का विषय बनी है। दोस्ती शायरी के ये नमूने तो ऐसी ही कहानी सुनाते है।
शायरी में वतन-परस्ती के जज़्बात का इज़हार बड़े मुख़्तलिफ़ ढंग से हुआ है। हम अपनी आम ज़िंदगी में वतन और इस की मोहब्बत के हवाले से जो जज़्बात रखते हैं वो भी और कुछ ऐसे गोशे भी जिन पर हमारी नज़र नहीं ठहरती इस शायरी का मौज़ू हैं। वतन-परस्ती मुस्तहसिन जज़्बा है लेकिन हद से बढ़ी हुई वत-परस्ती किस क़िस्म के नताएज पैदा करती है और आलमी इन्सानी बिरादरी के सियाक़ में उस के क्या मनफ़ी असरात होते हैं इस की झलक भी आपको इस शेअरी इंतिख़ाब में मिलेगी। ये अशआर पढ़िए और इस जज़बे की रंगारंग दुनिया की सैर कीजिए।
होली बहार के दिनों में मनाया जाने वाला एक धार्मिक और अवामी त्योहार है । इस दिन लोग एक दूसरे पर रंगों की गुलकारियाँ करते हैं, और ख़ुश होते हैं। घरों के आँगन को रंगों से सजाया जाता है । हमारा ये चयन होली के विभिन्न रंगों से सुसज्जित है ।आप इसे पढ़िए और दोस्तों में शेअर कीजिए।
इक-दोاک دو
one two
Nazr Iblees Ek-Do Sheeza
मसऊद जावेद
Ek Do Teen
सामाजिक
Meri Aur Do Betiyan
Armaghaan-e-Dr. Saleem Akhtar
ताहिर तोनस्वी
शोध एवं समीक्षा
Zahid Aur Do Kahaniyan
शिक्षाप्रद
Kulliyat-e-Dr. Zauqi
सुहैल अनवर
कुल्लियात
मेहर-ए-दाे नीम
इफ़्तिख़ार आरिफ़
काव्य संग्रह
Mopasan Ki 13 Kahaniyan Aur Do Drame
Lazzat-e-Aawargi
Kefiyat-e-Dom
अब्दुल अली
Hayat-e-Tayyeba Mehboob-e-Do Alam : SAW
मुनव्वर मुमताज़ ख़ाँ
Tohfa-e-Dakan
अहमद हुसैन माइल
दीवान
Maktubat-e-Do Sadi
सुहरवर्दिय्या
Purana Khwab Aur Do Aur Afsaane
सज्जाद हैदर यलदरम
Deewan-e-Shor
जोर्ज पेश शोर
एक दो ही नहीं छब्बीस दिएएक इक कर के जलाए मैं ने
एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगेऐसा लगता है कि हम लोग जिए जाएँगे
करते बयाँ जो होते ख़रीदार एक दोदेखा करें हैं साथ तिरे यार एक दो
एक दो तीन चार सिलसिला-वारउठ गए सारे यार सिलसिला-वार
एक दो रात में शोहरत नहीं मिलती पगलेइतने सस्ते में ये दौलत नहीं मिलती पगले
एक दो ज़ख़्म नहीं जिस्म है सारा छलनीदर्द बे-चारा परेशाँ है कहाँ से निकले
उस से रिश्ता था एक दो पल काऔर सालिम है ख़ौफ़ दिल दिल का
एक दो तीन चार से पहलेबस ख़ुदा था शुमार से पहले
एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें 'फ़ाकिर'हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया
एक दो अश्क बहाती है चली जाती हैअब तिरी याद भी आती है चली जाती है
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