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क़िस्सा
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
तज्दीद-ए-अमल
फिर दरस-ए-मुसावात की हाजत है जहाँ को
आक़ाई-ओ-ख़िदमत के ख़िताबात बदल डाल