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नज़्म
ख़ातून-ए-मशरिक़
इक जुनूँ-पर्वर बगूला है वो इल्म-ए-बे-वसूक़
जिस की रौ में काँपने लगते हैं शौहर के हुक़ूक़
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
फ़रोग़-ए-इल्म-ए-बे-क़दरी की हालत में नहीं मुमकिन
ख़स-ओ-ख़ाशाक होने को सदफ़ से क्यूँ नगीं निकले
ज़ाहिद चौधरी
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ग़ज़ल
तमाशा-गाह है या आलम-ए-बे-रंग-ओ-बू क्या है
मैं किस से पूछने जाऊँ कि मेरे रू-ब-रू क्या है
ज़िया फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
हूँ मैं इक आशिक़-ए-बे-बाक ओ ख़राबाती ओ रिंद
मुझ से मत पूछ मिरे इल्म-ओ-अदब का अहवाल
हसरत अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
इल्म-ओ-फिक्र-ओ-हिकमत की शम'एँ हम जलाते हैं
फ़न्न-ए-इल्म-ओ-हिकमत में बे-हिसाब हैं हम लोग
नज़ीर नादिर
नज़्म
हिण्डोला
ख़बर न बुर्द ब-रुस्तम कसे कि सोहरा-बम
न पूछ आलम-ए-काम-ओ-दहन नदीम मिरे