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हास्य
क्यूँ न उस को मैं हुज़ूरम यक-न-शुद दो शुद कहूँ
ये सितम कुछ कम नहीं है दिल दुखाने के लिए
इनाम-उल-हक़ जावेद
हास्य
तिरी शादी की बातें चल रही हैं आज-कल बेटा
सो तेरा साफ़-सुथरा हर घड़ी होना ज़रूरी है
इनाम-उल-हक़ जावेद
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शेर
तमाम उम्र गँवा दी जिसे भुलाने में
वो निस्फ़ माज़ी का क़िस्सा था निस्फ़ हाल का था
इनाम-उल-हक़ जावेद
नज़्म
इंकिशाफ़
तितलियों के पाँव में फूल फूल ज़ंजीरें
ख़ुशबुओं की बस्ती में ख़्वाब ख़्वाब ताबीरें
इनाम-उल-हक़ जावेद
हास्य
प्रोफ़ेसर ही जब आते हों हफ़्ता-वार कॉलेज में
तो ऊँचा क्यूँ न हो तालीम का मेआर कॉलेज में
इनाम-उल-हक़ जावेद
हास्य
प्रोफ़ेसर ही जब आते हों हफ़्ता-वार कॉलेज में
तो ऊँचा क्यूँ न हो तालीम का मेआर कॉलेज में