aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "jaanib-e-dair-o-haram"
दाइर इलेक्ट्रिक प्रेस, हैदराबाद
पर्काशक
ताजदार-ए-हरम पब्लिशिंग कंपनी, वेस्ट बंगाल
बी ए डार
लेखक
दाएरा-ए-तुलू-ए-इसलाम
दायर-ए-मतबुआत-ए-मिल्लीया, जौनपुर
दाइरा-ए-तहरीर-ए-नव, कोलकाता
दायरा-ए-ज़हन-ओ-इंक़लाब, लखनऊ
दाय़रा-ए-अदब, हैदराबाद
दायरा-ए-अदबिया, लखनऊ
दार-ए-अरफ़ात, लखनऊ
सूबे दार नरायण सिंह
संपादक
दायरा-ए-मिल्लिया, मुबारकपुर
दायरा-ए-उर्दू, पटना
दाइरा-ए-अदब, पटना
दार-ए-अर्नूस, नई दिल्ली
अहल-दैर-ओ-हरम रह गएतेरे दीवाने कम रह गए
तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैंतुझे हर बहाने से हम देखते हैं
बुझ रहे हैं चराग़-ए-दैर-ओ-हरमदिल जलाओ कि रौशनी कम है
हवा-ए-दैर-ओ-हरम से बचाना पड़ता हैख़ुदा को सीने के अन्दर छुपाना पड़ता है
दैर-ओ-हरम और उनसे वाबस्ता अफ़राद के दर्मियान की कश-मकश और झगड़े बहुत पुराने हैं और रोज़ बरोज़ भयानक रूप इख़्तियार करते जा रहे हैं। शाइरों ने इस मौज़ू में इब्तिदा से ही दिल-चस्पी ली है और दैर-ओ-हरम के महदूद दायरे में बंद हो कर सोचने वाले लोगों को तंज़ का निशाना बनाया है। दैर-ओ-हरम पर हमारे मुंतख़ब कर्दा इन अशआर को पढ़ को आपको अंदाज़ा होगा कि शायरी की दुनिया कितनी खुली हुई, कुशादा और ज़िंदगी से भरपूर है।
Iqbal : Mavara-e-Dair-o-Haram
सुलैमान अतहर जावेद
Charagh-e-Dair-o-Haram
सय्यद सफ़दर हुसैन
ग़ज़ल
Nawa-e-Dair-o-Haram
रंगा चारी
संकलन
Dair-o-Haram
शंकर लाल
मुस्लिम अंसारी
शाइरी
चौधरी मंज़ूर अहमद
शंकर लाल शंकर
काव्य संग्रह
Shumaara Number-003
सय्यद अज़ीज़ हसन नसीम
दैर-ओ-हरम, सहारनपुर
Shumaara Number-007
Shumaara Number-006
Shumaara Number-008
Dair-o-Haram Ka Afsana
वसी अहमद
अफ़साना
Shumaara Number-004, 005
Janib-e-Haram
सय्यद साजिद अली टोंकी
जब हम हुदूद-ए-दैर-ओ-हरम से गुज़र गएहर सम्त उन का जल्वा 'अयाँ था जिधर गए
भटके फिरे दो अमला-ए-दैर-ओ-हरम में हमइस सम्त कुफ़्र उस तरफ़ इस्लाम ले गया
मुरीद-ए-दैर-ओ-हरम कम-से-कम ये काम करेंहदीस-ए-दर्द-ए-मोहब्बत का ज़ौक़ आम करें
गर्मी-ए-दैर-ओ-हरम से न मिटी दिल की तपिशकर लिया सोज़-ए-जिगर से ही शरारा पैदा
ऐ दैर-ओ-हरम वालो तुम दिल की तरफ़ देखोका'बे का ये काबा है बुत-ख़ाने का बुत-ख़ाना
फ़रेब-ए-दैर-ओ-हरम में आ कर तवाफ़-ए-जाम-ओ-सुबू न करनागुनाह है रिंद-मशरबी में गुनाह की आरज़ू न करना
क़याम-ए-दैर-ओ-तवाफ़-ए-हरम नहीं करतेज़माना-साज़ तो करते हैं हम नहीं करते
जो कह रहे हैं कि आई नज़र न मंज़िल-ए-दोस्तवो लोग जानिब-ए-दैर-ओ-हरम गए होंगे
रखो दैर-ओ-हरम को अब मुक़फ़्फ़लकई पागल यहाँ से भाग निकले
हुई हैं दैर ओ हरम में ये साज़िशें कैसीधुआँ सा उठने लगा शहर के मकानों से
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