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ग़ज़ल
हर जज़्र-ओ-मद से दस्त-ओ-बग़ल उठते हैं ख़रोश
किस का है राज़ बहर में यारब कि ये हैं जोश
मीर तक़ी मीर
कुल्लियात
हर जज़्र-ओ-मद से दस्त-ओ-बग़ल उठते हैं ख़रोश
किस का है राज़ बहर में यारब कि ये हैं जोश
मीर तक़ी मीर
शेर
ये जज़्र-ओ-मद है पादाश-ए-अमल इक दिन यक़ीनी है
न समझो ख़ून-ए-इंसाँ बह गया है राएगाँ हो कर
सिराज लखनवी
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नज़्म
दूसरा तजरबा
बाँहों में लम्हा लम्हा सिमटने की काविशें
सीने के जज़्र-ओ-मद में समुंदर सा इज़्तिराब
हिमायत अली शाएर
नज़्म
बिंत-ए-माहताब
वो जज़्र-ओ-मद तिरे सीने का और वो जज़्बात
हैं मेरे वास्ते वहशत-ख़रोश ये लम्हात
सरताज आलम आबिदी
ग़ज़ल
जज़्र-ओ-मद हुस्न के दरिया में नज़र आता है
क़ाबिल-ए-दीद है आलम तिरी अंगड़ाई का