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नज़्म
पत्थर
उस के मरमर में सियह ख़ून झलक जाता है
एक इंसाफ़ का पत्थर भी तो होता है मगर
अहमद नदीम क़ासमी
शायरी के अनुवाद
ये एक कलिमा-ए-ख़ैर है बाइ'स-ए-शर है
जहाँ भी इक आज़ाद रूह की झलक दिखाई दे