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ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
जतावे उल्फ़त चढ़ावे अबरू इधर लगावट उधर तग़ाफ़ुल
करे तबस्सुम झिड़क दे हर दम रविश हटीली चलन दग़ा का
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मुनाफ़िक़ शाइ'र
जो नहीं लाते हैं ख़ातिर में ख़ुशामद को मिरी
वो झिड़क देते हैं मुझ को उन से घबराता हूँ मैं
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
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ग़ज़ल
झिड़क दिया हमें कूचे में उस ने हर-दम देख
हम अपने दिल में कुछ उस दम ख़जिल कसीर हुए
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
परेशाँ मुफ़्लिसी से आप ही वो क्यों न हो लेकिन
फ़क़ीरों को झिड़क देना सखी से हो नहीं सकता
अबू मोहम्मद सय्यद हुसैन सैफ़ी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ले लिया दिल मिरा ग़ुस्सा से झिड़क कर उस ने
दिलरुबाई भी है ज़ालिम की दिल-आज़ारी में