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नज़्म
चंद रोज़ और मिरी जान
इक ज़रा सब्र कि फ़रियाद के दिन थोड़े हैं
अरसा-ए-दहर की झुलसी हुई वीरानी में
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
तन्हाई के झूले खोलेंगे हर बात पुरानी भूलेंगे
आईने से तुम घबराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा
सईद राही
नज़्म
परछाइयाँ
नज़र झुकाए हुए और बदन चुराए हुए
ख़ुद अपने क़दमों की आहट से झेंपती डरती