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ग़ज़ल
न तेशा हम ने देखा है न जू-ए-शीर देखी है
मगर हाँ कुछ तो जज़्ब-ए-इश्क़ में तासीर देखी है
मोहम्मद नक़ी रिज़वी असर
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शेर
ख़रीदारी है शहद ओ शीर ओ क़स्र ओ हूर ओ ग़िल्माँ की
ग़म-ए-दीं भी अगर समझो तो इक धंदा है दुनिया का
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
शिकस्त-ए-बे-सुतून-ओ-मौज-ए-जू-ए-शीर शाहिद हैं
नहीं आसान राह-ए-इश्क़ का हमवार हो जाना
शोला करारवी
ग़ज़ल
काट कर रातों के पर्बत अस्र-ए-नौ के तेशा-ज़न
जू-ए-शीर-ओ-चश्मा-ए-नूर-ए-सहर लाते रहे
अली सरदार जाफ़री
शेर
दुनिया का ख़ून दौर-ए-मोहब्बत में है सफ़ेद
आवाज़ आ रही है लब-ए-जू-ए-शीर से
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
खाएँ क्यों ग़म गर नहीं बाक़ी निशान-ए-जू-ए-शीर
क्या वो शीरीं रह गई उस का शबिस्ताँ रह गया
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
ज़ेहन में यादों के गुलशन दिल में अज़्म-ए-जू-ए-शीर
इक नया फ़रहाद पाता हूँ जिधर जाता हूँ मैं
अली जवाद ज़ैदी
ग़ज़ल
सहरा में जा के देख कि हर रूद-ए-ख़ुश्क को
हम रंग-ए-जू-ए-शीर बनाती है चाँदनी