aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "kaavish-e-saamaan-e-sahar"
मतबा नसीम-ए-सहर, बदायूँ
पर्काशक
एम. ए. सागर
लेखक
इदारा-ए-सहाब
साज़मान मुताला-ओ-तद्वीन क़ुतुब-ए-उलूम-ए-इंसानी दनिशगाह
मतबा समर-ए-हिन्द, लखनऊ
नसीम इब्न-ए-समद
born.1947
मकतबा-ए-साग़र अदबी मरकज़, मेरठ
मक्तबा-ए-शहर यार, कराची
अज़ान-ए-सेहर पब्लिकेशंस, लाहौर
बज़्म-ए-साहिर, टांडा फैजाबाद
साज़मान-ए-फ़रहंग व इर्तिबाता-ए-इस्लामी
मतबा महकमा-ए-सदर निज़ामत कोतवाली अज़ला सरकार-ए-आली
मतबूआ सदर-ए-अंजुमन प्रेस मूस्लिस हाल, बंगलाैर
खानक़ाह शरीफ मुत्तासील मस्जिद शेख सुरुर-ए-शहर, बाँदा
ए. बी. सहर
दिन में है फ़िक्र-ए-पस-अंदाज़ी-ए-सरमाया-ए-शबरात भर काविश-ए-सामान-ए-सहर में रहना
जब भी सामान-ए-सुकून-ए-दिल-ओ-जाँ होने लगाचोट खाई थी कभी इस का गुमाँ होने लगा
जुनून-ए-बे-सर-ओ-सामाँ बड़े शकेब में हैकि तार अब कोई दामन में है न जेब में है
शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होतीया हमीं को ख़बर नहीं होती
रात आ कर गुज़र भी जाती हैइक हमारी सहर नहीं होती
काविश-ए-सामान-ए-सहरکاوش سامان سحر
effort of things in morning
Meer-e-Saman-e-Wajood
हसन अब्दुल हकीम
इक़बालियात तन्क़ीद
Dareecha-e-Seem-e-Saman
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
काव्य संग्रह
Saman-e-Wujood
बानो कुदसिया
महिलाओं की रचनाएँ
सरो-सामाँ
अख़्तरुल ईमान
अनुवाद
Bayaz-e-Sahar
माइल नक़्वी
Charagh-e-Sahar
हफ़ीज़ जालंधरी
Saman-e-Karbala
इतरत हल्लोरी
मर्सिया
Daleel-e-Sahar
कन्हैया लाल कपूर
जीवनी
कुल्लियात-ए-सहर
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
कुल्लियात
Azan-e-Sahar
अनवर आज़मी
काविश-ए-फ़िक्र
मुज़फ़्फ़र शह मीरी
आलोचना
सफ़र नामा-ए-हज
ग़ुलाम हसनैन पानी पती
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
Umeed-e-Sahar
अख़्तर बलोच
डायरी
सर-ओ-सामाँ
नज़्म
सामान-ए-एहतिमाम-ए-चराग़ाँ अभी नहींमहफ़ूज़ बिजलियों से गुलिस्ताँ अभी नहीं
कुछ दिन हवा-ए-बे-सर-ओ-सामाँ के साथ भीसाँसों का कारवाँ लिए तूफ़ाँ के साथ भी
सहरा-ओ-दश्त-ओ-सर्व-ओ-समन का शरीक थावो दर्द की दवा था दुखन का शरीक था
घर खुला छोड़ के चुपके से निकल जाऊँगाशाम ही से सर-ओ-सामान-ए-सहर बाँध लिया
शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकलाक़ैस तस्वीर के पर्दे में भी उर्यां निकला
सामान-ए-ज़ौक़-ओ-शौक़ समेटो सफ़र करोरहना ज़रूर है तो किसी दिल में घर करो
मंज़र-ए-सर्व-ओ-समन याद आयाफिर से गुम-गश्ता वतन याद आया
सब अपने अपने उफ़ुक़ पर चमक के थोड़ी देरमुझे तो दामन-ए-शाम-ओ-सहर की गर्द हुए
ख़ूँ से तर रविश रविशरंग-ए-गुल-ओ-समन न था
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