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ग़ज़ल
तो क्यूँ सज़ा में हो तन्हा गुनाहगार कोई
यहाँ तो जीते हैं सब इर्तिकाब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
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ग़ज़ल
वो चाँदी के पानी से धुले आरिज़-ओ-रुख़ पर
कैफ़िय्यत-ए-सद-रंग-ए-हिना याद है अब तक
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
क्या है ये कैफ़ियत-ए-मौसम-ए-गुल-पैराहन
न कहीं बाद-ए-बहारी न कहीं बू-ए-सुख़न