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ग़ज़ल
नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं
ठंडी हवाएँ भी तिरी याद दिला के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
हैं किसी के मुंतज़िर हम मगर ऐ उमीद-ए-मुबहम
कहीं वक़्त रह न जाए यूँही करवटें बदल कर
शकील बदायूनी
नज़्म
डाइरी
''हर एक करवट मैं याद करता हूँ तुम को लेकिन
ये करवटें लेते रात दिन यूँ मसल रहे हैं मिरे बदन को
गुलज़ार
नज़्म
मरहूम और महरूम
हर एक शब मैं फ़क़त करवटें बदलता हूँ
तुम्हारी क़ब्र के कंकर हों जैसे बिस्तर में
ज़ुबैर अली ताबिश
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ग़ज़ल
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
किसान
सर-निगूँ रहती हैं जिस से क़ुव्वतें तख़रीब की
जिस के बूते पर लचकती है कमर तहज़ीब की
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अपनी मल्का-ए-सुख़न से
शे'रों में करवटें ये नहीं सोज़-ओ-साज़ की
लहरें हैं ये हुज़ूर की ज़ुल्फ़-ए-दराज़ की
जोश मलीहाबादी
शेर
लेते लेते करवटें तुझ बिन जो घबराता हूँ मैं
नाम ले ले कर तिरा रातों को चिल्लाता हूँ मैं
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
ये शिकस्त-ए-दीद की करवटें भी बड़ी लतीफ़ ओ जमील थीं
मैं नज़र झुका के तड़प गया वो नज़र बचा के निकल गए
शायर लखनवी
नज़्म
शाम-ए-अयादत
ये कौन मुस्कुराहटों का कारवाँ लिए हुए
शबाब-ए-शेर-ओ-रंग-ओ-नूर का धुआँ लिए हुए