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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ग़लत है जज़्ब-ए-दिल का शिकवा देखो जुर्म किस का है
न खींचो गर तुम अपने को कशाकश दरमियाँ क्यूँ हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
परछाइयाँ
न जाने कितनी कशाकश से कितनी काविश से
ये सोते जागते लम्हे चुरा के लाए हैं
साहिर लुधियानवी
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नज़्म
मेरे भी हैं कुछ ख़्वाब
जो ज़ीस्त की बे-हूदा कशाकश से भी होते नहीं मादूम
ख़ुद ज़ीस्त का मफ़्हूम!
नून मीम राशिद
ग़ज़ल
ख़ुदा शरमाए हाथों को कि रखते हैं कशाकश में
कभी मेरे गरेबाँ को कभी जानाँ के दामन को
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अंजाम-ए-कशाकश होगा कुछ देखें तो तमाशा दीवाने
या ख़ाक उड़ेगी गर्दूं पर या फ़र्श पे तारे निकलेंगे
अलीम मसरूर
नज़्म
ख़ाक-ए-दिल
एक साथी भी तह-ए-ख़ाक यहाँ सोती है
अरसा-ए-दहर की बे-रहम कशाकश का शिकार