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ग़ज़ल
पुकारती है मुझे ख़ाक-ए-ख़िश्त-ए-पैवस्ता
ये नस्ब होने का है ख़त्म सिलसिला तुझ पे
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
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कुल्लियात
गर कुछ हो दर्द आईना यूँ चर्ख़-ए-ज़िश्त में
इन सूरतों को सिर्फ़ करे ख़ाक-ओ-ख़िश्त में
मीर तक़ी मीर
शेर
ख़ाक-ए-'शिबली' से ख़मीर अपना भी उट्ठा है 'फ़ज़ा'
नाम उर्दू का हुआ है इसी घर से ऊँचा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
पारसा हम-राह ले जाएँगे पिंदार-ए-अमल
हम तो अपने साथ उन की ख़ाक-ए-पा ले जाएँगे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
जिसे मिल जाए ख़ाक-ए-पाक-ए-दश्त-ए-कर्बला 'परवीं'
पलट कर भी न देखे वो कभी इक्सीर की सूरत