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ग़ज़ल
क्या ख़लीफ़ा जी ये है है है नहीं से निकले
आगे छुट्टी दो ऐ लो लाम अलिफ़ हमज़ा ये
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
ऐ जुनूँ उस्ताद बस ख़म ठोंक कर आ जाइए
हाँ ख़लीफ़ा हम भी देखें पहलवानी आप की
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
वैसे तो इंसान ख़ुदा का ख़ास ख़लीफ़ा बनता है
लेकिन जो हालात हैं इस के उन पर रोना बनता है
इफ़्तिख़ार हैदर
ग़ज़ल
तुझ से ही माँग रहा है वो तो ख़ुद अपना वजूद
ख़ुद जो साइल है उसे कोई ख़लीफ़ा न समझ
द्विजेंद्र द्विज
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नज़्म
दुखती हड्डियों की वकालत
फ़ुरात के किनारे भूक से मर जाने वाले कुत्ते के लिए
इस लिए कि वो थे ख़लीफ़ा-ए-वक़्त
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
मुसीबत की ख़बरें
आह बू-क़ैस की मौत के बार से झुक गए हैं ख़लीफ़ा के शाने
अबू-क़ैस क्या था तुम्हें क्या ख़बर शाम वालो
अली अकबर नातिक़
ग़ज़ल
परवीन सुल्ताना सबा
नज़्म
आख़िरी शब
अर्ज़ से उस के ख़लीफ़ा को उठाने के लिए
उस को अपने वतन-ए-असल में लाने के लिए