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लेख
मौलवी मोहम्मद ख़लील-उर-रहमान
नज़्म
ध्यान क़ब्र में उतरता ख़याल
मेरा रस्ता क़ब्रिस्तान से हो कर आगे जाता है
उस रस्ते से और भी लोग गुज़र कर आगे जाते हैं
ख़लीक़ुर्रहमान
ग़ज़ल
नर्म शगुफ़्ता चाँदनी हँसता हुआ कँवल कहूँ
ऐसा कोई सनम कहाँ जिस के लिए ग़ज़ल कहूँ
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
बरसों अश्कों से वुज़ू का सिलसिला करते रहे
हम नमाज़-ए-ज़िंदगी यूँ भी अदा करते रहे
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
वो दिल जिस को ख़याल-ए-मुर्सल-ए-मुख़्तार हो जाए
तजल्ली-गाह-ए-रहमत मतला-ए-अनवार हो जाए
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
वक़्त ने दिल की तबीअ'त में वफ़ा रक्खी है
कुल्फ़त-ए-आगही फिर उस की सज़ा रखी है
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
हर जगह बंदिश-ए-आदाब की पर्वा न करें
महरम-ए-राज़ से बेहतर है कि पर्दा न करें