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नज़्म
बरसात की बहारें
ऊँचा मकान जिस का है पच खना सिवाया
ऊपर का खन टपक कर जब पानी नीचे आया
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
सामान दीवाली का
ये सब तो हारा हूँ ख़ंदी तुझ भी हारूँगा
चढ़ा है मुझ को भी अब तो नशा दिवाली का
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
है पियाला शीर का लबरेज़ मह के हाथ में
अब शकर-ख़ंदी से उस में डाल दे तू क़ंद और
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
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नज़्म
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ख़ंदा-ज़न कुफ़्र है एहसास तुझे है कि नहीं
अपनी तौहीद का कुछ पास तुझे है कि नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं पल दो पल का शा'इर हूँ
मैं पल दो पल का शा'इर हूँ पल दो पल मिरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है पल दो पल मिरी जवानी है