aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "khayaal-e-vasl"
ख़याल-ए-वस्ल में पिन्हाँ
اے خیال وصل نادر ہے مے آشامی تریپختگی ہاے کباب دل ہوئی خامی تری
फिर 'ख़याल'-ए-सितम-ज़दा में कोईख़ुश्बू-अंगेज़ मिस्ल-ए-लाला है
बे-नियाज़ी तो मिला करती है दुनिया से 'ख़याल'तुम किसी तौर न तज्दीद-ए-ग़म-ए-ज़ात करो
जिस पर निगाह ठहरी जान-ए-'ख़याल' अपनीवो अजनबी है लेकिन लगता है आश्ना सा
मुझ में है मौजूद पर्वाज़-ए-'ख़याल'मो'तबर हूँ मैं भी फ़नकारों के बीच
लाज़िम ये पेश-ख़ेमा-ए-आफ़ात है 'ख़याल'बेजा जमा नहीं हैं परिंदे अलाप पर
ऐ 'ख़याल' अपने इरादों को तवाना रक्खोमुफ़्लिसी आती नहीं है किसी फ़नकार के पास
वाबस्ता तुझ से अज़मत-ए-शेअर-ओ-सुख़न हुईइस बात को भी रखना 'ख़याल' अपने ध्यान में
है म'अरका-आरा जो 'ख़याल' आज ब-ज़ाहिररखता है पस-ए-तैश गुज़ारिश का इरादा
रूह में जज़्बा-ए-उलफ़त को फ़ुज़ूँ पाता हूँजब ख़याल आता है मुझ को तिरी रानाई का
जिन्हें ख़बर ही नहीं शरह-ए-ज़िंदगी क्या हैवो मुजरिमों की तरह क़ैद अपने घर में हैं
बहार-ए-नौ को जनम दे रही थी वस्ल की शबहम आफ़ियत की रुतों में सिमट के देखते क्या
ऐ 'ख़याल' आइना-ए-हुस्न-ए-मुजस्सम की क़समख़ाक पर बैठ के मैं साहब-ए-अफ़्लाक हुआ
कोई बताए बहिश्त-ए-ख़याल-ए-वस्ल में भी‘अज़ाब-ए-हिज्र की सा'अत कहाँ से आती है
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