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ग़ज़ल
मोहम्मद मुबशशिर मेयो
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ग़ज़ल
लाख मौजों की बला-ख़ेज़ी ने की खिलवाड़ भी
उस ने कश्ती को मगर साहिल पे पहुँचाया भी है
महेंद्र प्रताप चाँद
ग़ज़ल
तुझे चाँद बन के मिला था जो तिरे साहिलों पे खिला था जो
वो था एक दरिया विसाल का सो उतर गया उसे भूल जा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
हम कि दुख ओढ़ के ख़ल्वत में पड़े रहते हैं
हम ने बाज़ार में ज़ख़्मों की नुमाइश नहीं की
अहमद फ़राज़
नज़्म
निसार मैं तेरी गलियों के
यूँही हमेशा खिलाए हैं हम ने आग में फूल
न उन की हार नई है न अपनी जीत नई