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ग़ज़ल
जिस जिप्सी का ज़िक्र है तुम से दिल को उसी की खोज रही
यूँ तो हमारे शहर में अक्सर मेला लगा निगारों का
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ख़ुश्बू की दीवार के पीछे कैसे कैसे रंग जमे हैं
जब तक दिन का सूरज आए उस का खोज लगाते रहना
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
लाओ तो क़त्ल-नामा मिरा
आबाद कर के शहर-ए-ख़मोशाँ हर एक सू
किस खोज में है तेग़-ए-सितम-गर लगी हुई