aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "khuda-e-bartar-o-aalaa"
बद्र-ए-आलम ख़लिश
born.1962
शायर
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
लेखक
नज्मी नगीनवी
born.1927
जामिया उसमानिया सरकार-ए-अाली, हैदराबाद, दकन
पर्काशक
फ़ख़्र-ए-आलम नोमानी
इदारा-ए-अदबियात-ए-बरार, नागपुर
फ़खरे आलम
सद्र आलम नदवी
संपादक
फ़ख़्र-ए-आलम आज़मी
सदर-ए-आलम साहब
मोलवी माह-ए-आलम
रफ़ीक़-ए-आलम प्रेस
आल-ए-अली अमरोहवी
मोहम्मद बद्र-ए-आलम
बद्र-ए-आलम बलरामपूरी
मैं जिस की ज़द में रहा आख़िरी तसल्ली तकख़ुदा-ए-बरतर-ओ-आला वो सिलसिला क्या था
मैं हर्फ़-ओ-सौत के अंधे लुटेरों से नहीं डरताख़ुदा-ए-बरतर-ओ-आला का दिल में प्यार ज़िंदा है
ख़ुदा-ए-बर्तरतेरी वहदानियत की क़सम
ख़ुदा-ए-बर्तरउन्हें शिफ़ा दे
ख़ुदा-ए-बर्तर ये जंग क्यों हैख़ुदा-ए-बर्तर ये जंग क्यों है
उर्दू के पहले सबसे बड़े शायर जिन्हें ' ख़ुदा-ए-सुख़न, शायरी का ख़ुदा कहा जाता है.
ख़ुदा-ए-सुख़न कहे जाने वाले मीर तक़ी मीर उर्दू अदब का वो रौशन सितारा हैं, जिन्होंने नस्ल-दर-नस्ल शायरों को मुतास्सिर किया. यहाँ उनकी ज़मीन पर लिखी गई चन्द ग़ज़लें दी जा रही हैं, जो मुख़्तलिफ़ शायरों ने उन्हें खिराज पेश करते हुए कही.
मीर तक़ी मीर 18 वीं सदी के आधुनिक उर्दू शायर थे। उर्दू भाषा को बनाने और सजाने में भी उनकी बड़ी भूमिका रही है। ख़ुदा-ए-सुख़न के रूप में प्रख्यात, मीर ने अपने बारे में कहा था 'मीर' दरिया है सुने शेर ज़बानी उसकी अल्लाह अल्लाह रे तबीअत की रवानी उसकी। रेख़्ता उनके के 20 लोकप्रिय और सबसे ज़्यादा पढ़े गए शेर आपके सामने पेश कर रहा है। इन शेरों का चुनाव आसान नहीं था। हम जानते हैं कि अब भी मीर के कई अच्छे शेर इस सूची में नहीं हैं। इस सिलसिले में नीचे दिए गए टिप्पणी बॉक्स में आपके पसंदीदा शेर का स्वागत है। अगर हमारे संपादक मंडल को आप का भेजा हुआ शेर पसंद आता है तो हम इसको नई सूची में शामिल करेंगे।उम्मीद है कि आपको हमारी ये कोशिश पसंद आई होगी और आप इस सूची को संवारने और आरास्ता करने में हमारी मदद करेंगें ।
Naqsh-e-Sani Intikhab-e-Kalam-e-Bartar
नादिर अ'ली बरतर
संकलन
Hayat-e-Aala Hazrat
ज़फ़रुद्दीन रिज़वी
जीवनी
Mahasin-e-Aala Ohda Daran-e-Adalat
मोहम्मद शम्सुद्दीन सिद्दीक़ी
Khuda-e-Sukhan
इदरीस सिद्दीक़ी
Siyar-ul-Auliya
Mohammad Bin Mubarak Alavi Kirmani
उपदेश
Hayat-e-Ala Hazrat
तारीख़-ए-अाला
सय्यद औलाद हसन
Malfoozat-e-Aala Hazrat
इमाम अहमद रज़ा खां बरेलवी
Aaghosh-e-Amina Se Rafeeq-e-Aala Tak
मुज़फ्फ़र हसन ज़फ़र अदीबी
Tazkira-e-Mashaheer-e-Barar
तज़किरा
हयात-ए-आला हज़रत
Tawareekh-e-Habeeb-e-Ala
वक़ार अली बिन मुख़तार अली
इस्लामिक इतिहास
मोहम्मद ज़फ़रुद्दीन बिहारी
''ख़ुदा-ए-बर्तरये दरियूश-ए-बुज़ुर्ग की सरज़मीं
ख़ुदा-ए-लम-यज़ल बतलाकोई ऐसी भी दुनिया है
ख़ुदा-ए-बर्तर ने आसमाँ को ज़मीन पर मेहरबाँ किया हैमगर मिरे ख़्वाब के नगर को चराग़ ने ख़ुश-गुमाँ किया है
हज़ार अंजुम की इक ज़िया थीमिरे ख़ुदा-ए-बुज़ुर्ग-ओ-बरतर
जिन्हें तलब है जहान भर की उन्हीं का दिल इतना तंग क्यूँ हैख़ुदा-ए-बर्तर तेरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यूँ है
जुदा है राह किसी की किसी से ऐ 'बरतर'जनाब-ए-शैख़ की रिंद-ए-ख़राब क्या जाने
नहीं जाह-ओ-नसब से नामवर 'इक़बाल' या 'ग़ालिब'‘अलम-बरदार-ए-शोहरत उन के रशहात-ए-क़लम निकले
जिस तरह काटनी थी ऐ 'बरतर'उस तरह ज़िंदगी बसर न हुई
यहाँ कभी न बनी है किसी की ऐ 'बरतर'कटेगी चैन से क्या ज़ेर-ए-आसमाँ मेरी
मुख़्तलिफ़ ढब से इबादत है ख़ुदा की हर जाका'बा-ए-पाक में गिरजा में सनम-ख़ाने में
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