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ग़ज़ल
गौरय्यों ने जश्न मनाया मेरे आँगन बारिश का
बैठे बैठे आ गई नींद इसरार था ये किसी ख़्वाहिश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
उस तरफ़ वो तो इधर हम हैं परेशाँ 'बेबाक'
ख़्वाहिश-ए-दीद किसी तौर न टाली जाए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
अगर हो सब्र-ओ-क़नाअत की दौलत ऐ 'परवीं'
गदा भी करते हैं वो ही जो शाह करते हैं
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
दौलत-ए-दीदार हस्ब-ए-मुद्दआ हासिल हुई
मिल गई जिस शख़्स को तक़दीर से इक्सीर-ए-इश्क़