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ग़ज़ल
कभी नौ-बहार बन कर हो चमन चमन में रक़्साँ
कभी कोएलों के लब पर कभी गुल से आश्कारा
इफ़्फ़त ज़ेबा काकोरवी
ग़ज़ल
ख़ाल-ए-मुश्कीं ने दिल ऐसा ही जलाया है कि बस
कोएलों पर भी ये धोका है कि अंगारे हैं
इमदाद अली बहर
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नज़्म
तुम रूह के साज़ पे
तो तुम से मुस्तआ'र ले लूँगा ये एहतियात
तुम अपने घर की अँगेठी में कड़कड़ाती लकड़ियों के कोएलों से