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नज़्म
एक आरज़ू
पिछले पहर की कोयल वो सुब्ह की मोअज़्ज़िन
मैं उस का हम-नवा हूँ वो मेरी हम-नवा हो
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
भिक्षु-दानी, प्यासा पानी, दरिया सागर, जल गागर
गुलशन ख़ुशबू, कोयल कूकू, मस्ती दारू, मैं और तू
जावेद अख़्तर
नज़्म
बरसात की बहारें
मारे हैं मौज डाबर दरिया दौंड़ रहे हैं
मोर-ओ-पपीहे कोयल क्या क्या रुमंड रहे हैं
नज़ीर अकबराबादी
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नज़्म
यादें
दूर कहीं वो कोयल कूकी रात के सन्नाटे में दूर
कच्ची ज़मीं पर बिखरा होगा महका महका आम का बोर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
जाने क्यूँ ऐसा हूँ मैं
या कोयल की बोली सुन लूँ मन ब्याकुल हो जाता है
जाने क्यूँ ऐसा हूँ मैं
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
तुम याद मुझे आ जाते हो
जब कोयल कूकू करती है जब पंछी पी पी करता है
तुम याद मुझे आ जाते हो
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
ये बूँदें पहली बारिश की, ये सोंधी ख़ुशबू माटी की
इक कोयल बाग़ में कूकी है, आवाज़ यहाँ तक आई है
अज़ीज़ नबील
शायरी के अनुवाद
सुब्ह की नील-परी मैं तेरे सपने देखूँ
कोयल धूम मचाए मैं तेरे सपने देखूँ