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हास्य
कुल्लियात-ए-'मीर'-ओ-'ग़ालिब' से ग़ज़ल लाया था मैं
आज वो भी छप न पाई आप के अख़बार में!
पॉपुलर मेरठी
ग़ज़ल
यक़ीं है 'शाद' मुझ को कुल्लियात-ए-नज़्म-ए-फ़ितरत से
गुलों ने रंग-ओ-निकहत के बहुत मज़मूँ चुराए हैं
शाद आरफ़ी
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कुल्लियात
अपना सर-ए-शोरीदा तो वक़्फ़-ए-ख़म-ए-चौगान है
आ बुल-हवस गर ज़ौक़ है ये गो है ये मैदान है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ज़र्द पत्ते ख़ुश्क कलियाँ फूल मुरझाए हुए
ये हैं अक्स-ए-क़ल्ब-ए-वीराँ हम ख़िज़ाँ कहते रहे
जयकृष्ण चौधरी हबीब
ग़ज़ल
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
आओ बेहतर बनाएँ हम ये जहाँ
बिन खिले न रहें कहीं कलियाँ
आओ बेहतर बनाएँ हम ये जहाँ
मोहम्मद असदुल्लाह
ग़ज़ल
यूँ ही खिलती रहेंगी सेहन-ए-चमन में कलियाँ
यूँही चलती रहेगी बाद-ए-सबा मेरे ब'अद