आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "lauh-e-sa.ng-e-marmar"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "lauh-e-sa.ng-e-marmar"
ग़ज़ल
पस-ए-मुर्दन रहे क़ल्ब-ओ-जिगर में गर यही सोज़िश
तो लौह-ए-संग-ए-मरमर होगी अज़ ख़ुद आतिशीं पत्थर
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
ख़ुदा-नुमा है बुत-ए-संग-ए-आस्ताना-ए-इश्क़
चलूँगा पा-ए-निगह बन के सू-ए-ख़ाना-ए-इश्क़
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
पृष्ठ के संबंधित परिणाम "lauh-e-sa.ng-e-marmar"
शब्दकोश से सम्बंधित परिणाम
अन्य परिणाम "lauh-e-sa.ng-e-marmar"
ग़ज़ल
फ़ज़ा में वहशत-ए-संग-ओ-सिनाँ के होते हुए
क़लम है रक़्स में आशोब-ए-जाँ के होते हुए
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
बुज़दिल
हुजूम-ए-संग-ए-अना और ज़ब्त-ए-पैहम ने
मिसाल-ए-रेग-ए-रवाँ बे-क़रार रक्खा है
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
पैकर-ए-संग-ओ-आहंग जैसा तन्हा खड़ा हूँ वैसे तो
अंदर टूटा फूटा हूँ सालिम लगता हूँ वैसे तो
महबूब राही
शेर
हुस्न की शर्त-ए-वफ़ा जो ठहरी तेशा ओ संग-ए-गिराँ की बात
हम हों या फ़रहाद हो आख़िर आशिक़ तो मज़दूर रहा
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
मौसम-ए-संग-ओ-रंग से रब्त-ए-शरार किस को था
लहज़ा-ब-लहज़ा जल गई दर्द-ए-बहार किस को था